अवमान विधि का उद्भव और विकास (Contempt of Court: Origin and Development)
1. परिचय:
अवमान विधि (Contempt of Court) का उद्देश्य न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखना और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप को रोकना है। यह विधि न्यायालय की निष्पक्षता और न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया को संरक्षित करने के लिए बनाई गई है।
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2. अवमान विधि का उद्भव (Origin of Contempt Law):
प्राचीन समय:
अवमान का विचार अंग्रेजी न्याय प्रणाली से आया है। ब्रिटेन में 12वीं शताब्दी से न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के लिए कदम उठाए गए।
ब्रिटिश काल:
भारत में अवमान विधि ब्रिटिश शासन के दौरान लाई गई। अंग्रेजों ने इसे अपने हितों की रक्षा के लिए लागू किया।
भारतीय संविधान में प्रावधान:
संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 के तहत भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय को अवमान की कार्यवाही करने की शक्ति दी गई है।
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3. विकास (Development):
अवमान अधिनियम, 1971:
भारत में Contempt of Courts Act, 1971 लागू किया गया, जो अवमान विधि का प्रमुख आधार है। यह दो प्रकार की अवमान को परिभाषित करता है:
सिविल अवमान (Civil Contempt): न्यायालय के आदेश की अवहेलना या उसका पालन न करना।
दंडात्मक अवमान (Criminal Contempt): न्यायालय के प्रति अपमानजनक आचरण, उसके काम में बाधा डालना या न्यायपालिका की छवि को खराब करना।
महत्वपूर्ण निर्णय:
न्यायालयों ने समय-समय पर अपने निर्णयों से इस विधि को स्पष्ट किया। उदाहरण:
Re Arundhati Roy Case (2002): इसमें सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय की गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
Prashant Bhushan Case (2020): यह मामला न्यायपालिका की आलोचना और स्वतंत्रता पर आधारित था।
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4. उद्देश्य:
न्यायालय की गरिमा और निष्पक्षता को बनाए रखना।
न्याय प्रक्रिया में अवरोध रोकना।
जनता का न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखना।
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5. आलोचना:
अवमान विधि का दुरुपयोग सत्ता के दमनकारी साधन के रूप में किया जा सकता है।
"न्यायपालिका की आलोचना" और "अवमान" के बीच की रेखा धुंधली है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का हनन।
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6. निष्कर्ष:
अवमान विधि न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। हालांकि, इसके प्रयोग में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि यह अधिकारों और स्वतंत्रता का दमन न करे।
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